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Thursday, 23 April 2015

निःशब्दता

कश्मकश में हैं शब्द 
जुबां पर आ  गये अगर 
आँखों में सैलाब न उतर जाये तब 
यूँ ही निःशब्दता के आँचल तले 
महफूज़ जी लेंगे सदा 

उफनते जज़्बात 
तूफानों से झूझते 
फंसे अरमानो के भंवर में 
ओढ़ निःशब्दता की चुनरिया 
सुकून पाते मन में 

~ २४/०४/२०१५~ 
Deeप्ती (Copyright all rights reserved)

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