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Wednesday 19 November 2014

काश के हम ज़िंदा होते



काश के हम ज़िंदा होते 


नींद में तो सपने होते 

सपने में ही अपने होते 

खुशियों के समुन्दर होते 


काश के हम ज़िंदा होते


कागज़ी फूलों में खुशबु होती 

बंधन की न फुफकार होती 

चन्दन से हाथ लिपटे होते 


काश के हम ज़िंदा होते 


सूखे आँगन में हरियाली होती 

उजड़े घोंसले में चिरईया होती 

मन के अँधेरे में रौशनी होती 


काश के हम ज़िंदा होते 


बिछड़े भी संग ही होते 

लाशों के ना ढ़ेर होते 

कुछ हम भी जी लेते 


काश के हम ज़िंदा होते। 



~ १९/११/२०१४~ 

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