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Wednesday, 12 November 2014

हवा और मेँ


थाम हवा का हाथ 
बह चला उसके साथ 
रुकना भी चाहा 
फिर कहीं रुक न पाया 

 मैंने पुछा 
"क्यों नहीं रुकने देती मुझे 
जहाँ चाहूँ वहीं पे 
तनिक सुस्ता तो लूँ  
मीठी नींद ले तो लूँ 

वह बोली 
"रुकना अपना काम नहीं 
 बहता चल संग यूँही 
थामाँ है जो हाथ मेरा 
तो अपना भी ले रूप मेरा 
बह चल बस बह चल.… "

में सोचूं 
"क्या बहना ही जीवन है?
रुक गया तो
घुट जायेगा दम मेरा 
क्या शुरू और क्या अंत है  
सच , बहना ही तो जीवन है। "

लो, आज फिर 
थाम हवा का हाथ 
बह चला उसके साथ 
 बहता चला बस बहता रहा। 

~ १३/११/२०१४~ 


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