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Thursday, 6 November 2014

उलझा गोला

Pic taken from net


कोने में पड़ा रिश्तों का उलझा गोला 
धुल से अटा हुआ 
ताक रहा था मुझे 
कुछ सहमते कुछ झिझकते 

कुछ सोच, मैंने उठा लिया 
पोंछ कर साफ़ करा 
ढूंढ रहा अब ओर-छोर 
शायद ,मिल ही जाये कोई किनारा 

खींच पाता गर कोई धागा 
तो बुन ही लेता जोड़-तोड़ कर 
एक मुलायम रेशमी 
स्नेहहिल सा स्वेटर  

जिसे ओढ़ 
मन पर अपने 
गद गद मुस्काता 
उसके आगोश में 

लपेट कर उसको 
निकल जाता जूझने 
बर्फीली आँधियों से 
तनिक भी न घबराता 

लेकिन अब 
बेचैन हूँ 
ढूँढ ढूँढ 
कोई भी सुलझा किनारा 

झटक हाथ से वहीँ उसे 
सिहर रहा अंतर तक 
ढक सफ़ेद चादर से 
सिसक रहा अब तलक !



~०७/११/२०१४~ 

2 comments:

  1. lagta hai Gurgaon ki hawa mein hi kuch hai aajkal. :(

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    1. kya pata kya hai kya nahin.. lekin abhi padhi uss book ka asar bahut hai abhi tak :p

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