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प्रीत के रंग में रंगी मोहना
रंग ना भावे और कोये
रंग तेरे प्रेम का चढ़ा ऐसा
मन ना भावे और कोये
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हे ! केशव नन्द गोपाला
बँसी धुन में खो जावूं
जहर भी अमृत बन जावे
तुझ सी प्रीत न निभाए कोये
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प्रीत का नशा ऐसा चढ़ा सोहना
नशा ना भाये और कोये
झूमूँ गाऊँ में अल्हड
प्रेम ना कोई और कर पाये
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इतनी अरज सुन ले गिरिधर
तुझ में ही बह जाऊं
आँख जब भी मूंदूं
तुझ में ही समाऊँ।
~२१/११/२०१४~