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Thursday, 21 April 2011

‘मैं’ और ‘तुम’


मैंने तुम्हारी किसी बात से
कब किया था इनकार
तुमने चलो कहा
मैं चल पड़ी
तुमने उडो कहा
मैं उड़ चली
तुमने रुको कहा
मैं रुक गयी
रुक गयी थी ना मैं ?
देखा था ना तुमने?
लेकिन सच से कैसे
करते हम इनकार ?
ना तुम रुक पाए
ना मैं रुक पायी
तन रुक गए
मन नहीं रुके
सोच रुक गयी
भावना कहाँ रुकी ?
तुम अपने रास्ते चल दिए
मैं अपने रास्ते....
लेकिन सच यह है
तुम मेरे साथ आ गए
मैं तुम्हारे साथ हो ली
तब मैं ‘मैं’ कहाँ रही
मैं तुम हो गयी
तुम ‘तुम’ कहाँ रहे
तुम मैं बन गए
अब
तुम मैं हूँ, और
मैं तुम.

~२१/०४/२०१~

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