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Saturday, 2 April 2011

वेदना


रोऊँ मैं याद कर  अपना भीगा आँचल
जो कभी था मेरी आँखों का तारा
इक कदम भी न बढाता
थामे बगैर हाथ मेरा
आज पथरा गयी हैं आँखें
उस चौराहे उस आँगन को निहारते
जहाँ गूंजती थी कभी
‘माँ माँ’ की मधुर आवाज़ ...

यह आँख बंद होने से पहले
साँसों कि डोर टूटने से पहले
एक बार करा जा मुझे
माँ , होने का वो मधुर एहसास ..!

~01/04/2011~

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