एक बार फिर आ गया
भाई बहन के अटूट बंधन का त्यौहार..
सजेंगी कलाइयां भाइयों की
बहन के प्रेम धागे से
नम होंगी फिर आँखें
सर पे टीका सजाते
मुंह में बर्फी खिलाते ..
जब करें आरती भाई भावज की
दिल गदगद हो जावे
उनकी खुशियों की कामना
मन में सजाये
दिल बलैयां भरपूर लेवे ..
पिता के वंश को आगे बढ़ाते
उन नन्हे कोमल फूलों
की किलकारी में
मिश्री
घुलती सी जावे !!
राखी के इस पावन पर्व पे
शुभकामनायें और प्रेम
स्वीकार करो मेरा भी
पुलकित हो तब मन
हर्षोउल्लास से भर जावे !!!
~१९/०८/२०१३~
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-08-2013) के चर्चा मंच -1348 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteअरुन जी .. में आपकी आभारी हूँ मेरी इस रचना को चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने के लिए..
Deleteशुक्रिया
(मैंने इस लिंक को कहीं भी नहीं शेयर करा था .. आप मेरी इस प्रस्तुति तक कैसे पहुंचे ..कृपया बताने का कष्ट करें )
सुन्दर रचना..:-)
ReplyDeleteधन्यवाद ..
Deleteबहुत सुन्दर भावप्रवण रचना...
ReplyDelete:-)
धन्यवाद ..
Deleteधन्यवाद ..
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