नवंबर २०१५ |
बरसों से उस कमरे की खिड़की खुली थी
दम घोटने वाली दुर्गन्ध से लथपथ
दो कदम की ही तो है दूरी
आज सोचा हाथ बड़ा बंद कर ही दूँ
कुछ खिड़कियां बंद ही अच्छी
वक़्त के साथ बदलाव ज़रूरी है
कमरे की साज सज्जा बदलना भी
कुछ ताज़े फूलों की महक
अपनेपन की मिठास
और ढेर सारी मुस्कराहट
आज सुकून की नींद आएगी
नयी किरण से लिपटी
खिली खिली सुबह खिलखिलाएगी
~ १७/११/२०१५ ~
©Copyright Deeप्ती
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