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Thursday, 15 January 2015

रात

गुडगाँव की रात २०१४ 

गोधुली से बदला मिजाज़ मौसम का 
लगता बस अब रो ही देगा रब मेरा 
थकी चिरैयाँ लौटी अपने घर 
गिलहरियों ने भी छोड़ी अठखेलियाँ 
मूँद अपनी आँखों को 
फूलों ने करा अलविदा दिन को 

पल्लू में झुका के आँखें 
करे इंतज़ार चांदनी का 
कौन जाने ये घनघोर अँधेरी रात 
किसे बनाएगी अपना शिकार 
सूनी आँखें सूज गयीं 
करे प्रिय का इंतज़ार 

~ १५/०१/२०१५ ~ 




Deeप्ती  (Copyright all rights reserved)

2 comments:

  1. I don't like such nights. :( but a nice poem. :)

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    1. neither do I... actually wanted to write on dawn n this came out :(

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