उस टूटे कुल्हड़ में चाय और बासी रोटी
आम की डाल पर झूलती उसकी अल्हड़ चोटी
मेहंदी की खुशबु से महकती हथेली गोरी
माँ की वो मीठी सी लोरी
कानो में गूंजती आज भी है
बरगद के नीचे वो दोस्तों की महफ़िल
सूखी रेत सी हाथ से गयी फिसल
सूखी रेत सी हाथ से गयी फिसल
बेफिक्र चहकते मस्ताते कदम
बेख़ौफ़ खेलते दौड़ते हुए बेदम
वो हसरतें आज भी मचल जाती हैं
टूटी पुलिया पर साईकल चलाना
मैदान में यूँ पतंग उड़ाना
पोखर में छलाँगें लगाना
रेतीली पहाड़ी पे लोटपोट होना
दिल में टीस आज भी छोड़ जाती हैं
टूटी पुलिया पर साईकल चलाना
मैदान में यूँ पतंग उड़ाना
पोखर में छलाँगें लगाना
रेतीली पहाड़ी पे लोटपोट होना
दिल में टीस आज भी छोड़ जाती हैं
बाग में मस्त हो आम तोडना
पंछी के साथ उड़ने को मचलना
पाठशाला में इतराते बस्ता ले जाना
पेड़ के नीचे गहरी नींद सो जाना
उस ख्वाब में मुस्कराहट आज भी जीती है
~ ०१/०१/२०१५~
Deeप्ती (Copyright all rights reserved)
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