Search This Blog

Tuesday, 2 December 2014

रूह

रूह ने न छोड़ा साथ 
ओ! मेरे नाथ 
वही तो है सच्चा साथ 

जिस्म छोड़ा 
साँस छोड़ी 
मुलाक़ात छोड़ी 
रूह का बंधन 
न छोड़े कोई 

तन तो मिट्टी है 
 मन एक भ्रम 
ख्वाब कहाँ हक़ीक़त है 
आत्मा तो अमर है 

छोड़े हर कोई साथ 
चाहे फिर वो हो 
अपना तन या मन 
या ही हो संगी साथी 
रूह ही तो है बस अपनी 

संभाल लो 
और सिमट जाओ 
रूह में अपनी बस जाओ 

~ ०३/१२/२०१४~ 

1 comment: