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Thursday, 12 May 2011

समर्पित



शीतल ठंडी पुरवाई 
लेके मीठी याद है आई 
उस उमस भरी तीखी धुप में 
बारिश की फुहार सी 
मिश्री सी मीठी बोली 
पड़ी थी मेरे कानो में 
शरमा के तब सिमटी थी 
उन यादों में 
नीले आँचल में छूप के
मुस्काई थी मन ही मन में 
पुलकित हो तब खो 
गयी थी ख्वाबों में 
कोयल की सुरीली कूक पर
हर्षित हो .. कांपते अधरों से
चूम गयी थी मोगरे को 
मनमोहिनी उसकी खुशबू से 
सराबोर हो ओत प्रोत हो गयी
झूमने लगी पत्तियों की 
सरसराहट से 
प्रीत के रंग में रंग के 
हो गयी तब समर्पित मैं....!


~१२/०५/२०११~



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