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Thursday, 15 January 2015

रात

गुडगाँव की रात २०१४ 

गोधुली से बदला मिजाज़ मौसम का 
लगता बस अब रो ही देगा रब मेरा 
थकी चिरैयाँ लौटी अपने घर 
गिलहरियों ने भी छोड़ी अठखेलियाँ 
मूँद अपनी आँखों को 
फूलों ने करा अलविदा दिन को 

पल्लू में झुका के आँखें 
करे इंतज़ार चांदनी का 
कौन जाने ये घनघोर अँधेरी रात 
किसे बनाएगी अपना शिकार 
सूनी आँखें सूज गयीं 
करे प्रिय का इंतज़ार 

~ १५/०१/२०१५ ~ 




Deeप्ती  (Copyright all rights reserved)

Tuesday, 13 January 2015

Recollection


 
Brazil 2013
Moving my fingers
On the dusty desk
Wiping off the
Memories
It embraces
Sealed
In the vestibule
Of my parched passion
Succumbing to the heat
Sweltering in my vision
Melting to the core.

Dusting the corners
Of my room
Puffing away the
Reminiscences
It holds
Amiably
In the grooves
Of my contented humanity
Reconnoitering the zeniths
Probing the nebula
Of my beliefs.

~14/01/2015~



Deeप्ती  (Copyright all rights reserved)

Friday, 9 January 2015

Lovely Greens

Greenwoods, Gurgaon



Lingering
Over the
Vestibule of
Everlasting
Limpid 
Yore

Grooming and
Reciprocating
Ebullience and
Euphoric
Notations
Symbolically!!



Deeप्ती  (Copyright all rights reserved)

Friday, 2 January 2015

Winter Rains


Washed up in winter rains
Petunia, Pansy and Zinnias
Smiling swaying valiantly
Enjoying contentedly

Splashed up by morning rain
Garden greens beaming
With soaring high heads
Glistening portentously

Smeared with dew drops
Daylight peeped mystically
Filling in with all its pride
Blushing as a new bride

Streaked with the chill
Warm breath radiated
Pleasing the senses
Dissolving in winter rains.


~02/01/2015~

Deeप्ती  (Copyright all rights reserved)

Thursday, 1 January 2015

यादें


उस टूटे कुल्हड़ में चाय और बासी रोटी 
आम की डाल पर झूलती उसकी अल्हड़ चोटी 
मेहंदी की खुशबु से महकती हथेली गोरी 
माँ की वो मीठी सी लोरी 
कानो में गूंजती आज भी है

बरगद के नीचे वो दोस्तों की महफ़िल
सूखी रेत सी हाथ से गयी फिसल 
 बेफिक्र चहकते मस्ताते कदम 
बेख़ौफ़ खेलते दौड़ते हुए बेदम 
वो हसरतें आज भी मचल जाती हैं

टूटी पुलिया पर साईकल चलाना
मैदान में यूँ पतंग उड़ाना
पोखर में छलाँगें लगाना
रेतीली पहाड़ी पे लोटपोट होना
दिल में टीस आज भी छोड़ जाती हैं  

बाग में मस्त हो आम तोडना 
पंछी के साथ उड़ने को मचलना 
पाठशाला में इतराते बस्ता ले जाना 
पेड़ के नीचे गहरी नींद सो जाना 
उस ख्वाब में मुस्कराहट आज भी जीती है 

~ ०१/०१/२०१५~ 

Deeप्ती  (Copyright all rights reserved)