वीरान घास के मैदान में
सूखे पत्तों पे पड़ते कुछ
सुस्त कदमों की चरमराहट
शुष्क हवाओं में
विलीन होते रेत के बवंडर से
चिपकी रूह की सरसराहट
अनसुने शब्दों के महल को
ताश के पत्तों सा
बिखरते देखने की घबराहट
ऊपर बहुत ऊपर
उस सूखे पेड़ की डाल पे
बंजर घोंसले से सुनी आहट
आह! जिंदगी
देख तुम्हें भर आई आँखें
नयी किरण अब आई सिमट !!
~०६/०८/२०१३ ~
Liked it..very nice,very hopeful end..:)
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