जीवन के चक्रव्युह में
आखिर फंस ही गए
बुद्ध बनने चले थे
कामदेव के वश में हो गए
सृष्टि का विनाश होगा
हर दिल में आक्रोश होगा
सृजन कि कहाँ बात करें
मानव का अब पतन होगा
थर्थाराएगा जलजलों से
जल जायेगा ज्वालामुखी से
हरियाली कि कहाँ बात करें
कुरूप इसका रूप होगा..
जीवन का चक्रव्यूह
अब अपना खेल रचाएगा
तहस नहस हो अब
नया जीवन बनाएगा.....!!
~२३/०१/२०१२~
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