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Monday, 23 January 2012

चक्रव्युह


जीवन के चक्रव्युह में
आखिर फंस ही गए
बुद्ध बनने चले थे
कामदेव के वश में हो गए

सृष्टि का विनाश होगा
हर दिल में आक्रोश होगा
सृजन कि कहाँ बात करें
मानव का अब पतन होगा

थर्थाराएगा जलजलों से
जल जायेगा ज्वालामुखी से
हरियाली कि कहाँ बात करें
कुरूप इसका रूप होगा..

जीवन का चक्रव्यूह
अब अपना खेल रचाएगा
तहस नहस हो अब
नया जीवन बनाएगा.....!!

~२३/०१/२०१२~

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