अक्सर नम हो जाती हैं आँखें याद उन्हें कर के
कालिख सी खिंच जाती है काजल के बह जाने से
सिरहन दौड जाती है महसूस उन्हें करते ही
तड़प जाती हूँ मैं नींद में भी ....
हे प्रिय ! कहाँ हो ?
नज़रें बिछाये बैठी हूँ
आंसूं थामे बैठी हूँ
भर्रायी आवाज़ छुपाये बैठी हूँ...
थाम लो आकर बाहों में
छुपा लो अपनी साँसों में
समेट लो अपनी धडकन में
बाँध लो अपने आगोश में...
नम आँखों को फिर भर जाने दो
काजल को ज़रा और बहने दो
प्रेम में अपने समेट कर
सिरहन को और बड़ा दो...!!!!
~०३/०१/२०१२~
bahut khoob
ReplyDeletedhanyavaad...
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