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Sunday, 13 September 2015

मैं आ गया

माँ! बाबा! देखो मैं आ गया

आँखे खोलो और ह्रदय में बसा लो
तुम्हारी आँखों का तारा
राज दुलारा जन्मों से बिछड़ा
तुम्हारा अपना आ गया

सपना जो सजाया था तुमने
अपनी छोटी सी दुनिया का
उसका एक नन्हा छूटा हुआ कोना
जोड़ने आ गया

शब्दों का ताना बाना
उखेरा था जो पन्नो में
उन भिखरे शब्दों को जोड़
तराना बनाने आ गया

साँझ के बढ़ते अँधियारे
में दीप की रौशनी से
बोझिल होती आँखों
में नयी रौशनी जलाने आ गया

माँ! बाबा! देखो ना में आ गया!


©Copyright Deeप्ती

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