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Thursday, 28 August 2014

रंग

                                                                               
बड़े दिनों के बाद .. आज फिर
आई है वो सोंधी खुशबु
क्या कहीं कोई बादल.. मुस्कराया है दिल से
जो बे-लगाम बह रहा है
कहीं तो खिलेगा.. इन्द्रधनुष भी आज
जैसे हो ताज जहान का
माटी में दुबके वो बीज..अंकुरित होकर आज
देखेंगे रंग हज़ार
कुम्हलाए बाग़ बगीचे..इतरायेंगे आज
हवा के झोंकों से
कूह्केगी आज कोयल..घोलेगी मिठास
हर मन में
नाचेंगे मयूर पंख पसार.. मौसम पर जायेंगे
वार-वार
क्या कभी में भी देख पाऊँगी यह सब
या सिर्फ महसूस ही करती रह जाऊँगी ?
क्या कभी ये बंद खिडकी खुलेगी मेरे लिए
या सिर्फ काला ही है मेरा जीवन ?
क्या होते हैं रंग.. रंगों के जान पाऊँगी
या यूँ ही अंधेरों में भटकती रह जाऊँगी ?
सुना है ठाना है कई लोगों ने
दिखायेंगे रंग हमे भी , हम जैसे भी
खोलेंगे अनेक रंगों की खिडकी ..

~२८/०८/२०१४~



**एक प्रयास कुछ अँधेरी जिंदगी में रौशनी भरने का.. “नेत्र दान” करें **

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