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Wednesday, 5 February 2014

उलझन


पुलक उठा मन मयूर
हरकत महसूस करते ही
अनगिनत ख़्वाब बुनने लगा
हर्षित हो चहकने लगा
अनजान सा डर भी समाया
ह्रदय के किसी कोने में
फिर खुशियों ने ले आगोश
सब गम को भुलाया..
एक एक पल लगे
जैसे एक युग बीता
सुनहरी भोर की चाहत में
वो वक्त भी बीत गया
क्या पता था काले बादल
जो छाए आसमान में हैं
वो बरस ही जायेंगे
और कहर भी बरपाएंगे
वो अनसुनी किलकारी
डूब ही जायेगी
बारिश के शोर में
कहाँ पता था ......
ऐ खुदा! कोई शिकायत नहीं
फिर भी मन भारीहै
नन्ही किलकारी की उम्मीद
क्या इतनी बड़ी है??

छोटी सी प्यार की है
मेरी अपनी दुनिया
सूना घर , सूना मन
कैसे कटेगा ये सफर..!

~०३/०२/२०१४~



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