पुलक उठा मन मयूर
हरकत महसूस करते ही
अनगिनत ख़्वाब बुनने लगा
हर्षित हो चहकने लगा
अनजान सा डर भी समाया
ह्रदय के किसी कोने में
फिर खुशियों ने ले आगोश
सब गम को भुलाया..
एक एक पल लगे
जैसे एक युग बीता
सुनहरी भोर की चाहत में
वो वक्त भी बीत गया
क्या पता था काले बादल
जो छाए आसमान में हैं
वो बरस ही जायेंगे
और कहर भी बरपाएंगे
वो अनसुनी किलकारी
डूब ही जायेगी
बारिश के शोर में
कहाँ पता था ......
ऐ खुदा! कोई शिकायत नहीं
फिर भी मन भारीहै
नन्ही किलकारी की उम्मीद
क्या इतनी बड़ी है??
छोटी सी प्यार की है
मेरी अपनी दुनिया
सूना घर , सूना मन
कैसे कटेगा ये सफर..!
~०३/०२/२०१४~
can feel the pain in this poem..
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