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Friday, 3 June 2016

वो..... !!

हवा में लहराता तेरा वो रेशमी दुपटटा
अनजाने ही छू गया था मेरा चेहरा
महक उठा मेरा अंतर्मन
दौड़ पड़ी गुदगुदाती सी सिरहन
घुमड़ आये बादल जम के बरसे
सर से पैर तक भिगोए रखें
प्रेम की मासूम बूँदों से

सरसराती नीम की डाली
झूला रही थी उन घरोंदों को
नन्हे पंछी सो गए सुन के तेरी लोरी
लहराते झूमते नाचते पेड़ मन मयूर को रिझा रहे थे
उस दिन जब देखा था तुझको खिड़की से झांकते हुए
सुरमई आँखों में सतरंगी इंद्रधनुष चमके थे
अधरों पे बिखेरे मासूम मुस्कान

~ ०१/०६/२०१६ ~


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