चेन्नई २०१५ (Net) |
आज फिर कहर बरसा है
नन्ही जान के आंसू से भरा है
भूख से बिलखते
गीले कपड़ों में सिसकते
एक पग सूखी धरती को तरसा है
हे प्रभु ! ये कैसी परीक्षा है
उन मासूम को क्यों परखा है
अभी-अभी तो खोली हैं आँखें
अभी तो पहली मुस्कान से सबका मन जीता है
आज फिर कहर बरसा है
बाढ़ में बहती एक ज़िंदा सी लाश को देखा है
मजबूर हूँ में भी
किसी तरह एक पेड़ की डाली को थामा है
उसी पे बैठ तेरा तमाशा देखा है
दो दिन से उसकी पत्ती चबा पेट भरा है
ना जाने क्या हुआ होगा मेरी चिरैया का
जिसे पिंजरे में आज तक कैद रखा है
आज समझ आया उसका दर्द क्या है
क्यूंकि आज फिर केहर बरसा है....
~०४/१२/२०१५~
©Copyright Deeप्ती
touching.
ReplyDeleteyeah situation itself is so very tearing
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