माँ के आँचल से उठती वो रोटी की महक
तब बिलकुल ना भाती थी
ना जाने क्यों आज उसी महक को
तरसता है मन
पूरे परिवार का ख्याल रखने के बाद
रात को जब उसकी गोद मिलती थी
तब सुकून मिलता था
आज थकान क्या होती है पता चलता है
जो कभी अपने लिए जी ही नहीं
हमे अपने हिस्सा का भी भोजन
खिलाने वाली तब भी भूखी सोती
आज हमारे तिरस्कार से भूखी सोती है
हमारे लिए साफ़ बिछोना बिछा
खुद जमीन पर सोती
आज हमारे मखमल के बिछोने
उसके लिए अछूते है
दर्द से तड़पती बूढ़ी हड्डियाँ
चटकाती बच्चों से मिलने
इधर से उधर भागती
और बच्चे कतराते दूर चले जाते हैं
हाय री किस्मत !
उस अकेली ने अपने सारे बच्चों
का जीवन सजाया संवारा
उसका जीवन बच्चों ने ही गुम कर दिया !
जब कहीं तू दूर चली जायेगी ना
तब तेरी बहुत याद सताएगी
तेरी मीठी वानी को तरसेंगे
फिर भी आज तुझे ना अपनाएंगे
तब तो दुनिया को दिखाने को
सौ सौ आंसू भी टपकायेंगे
फूट-फूट रो सैलाब ले आएंगे
पंडितों के घर भर देंगे
नाते रिश्तेदारों को समझायेंगे
तेरी क्या कीमत थी हमारे जीवन में
लेकिन माफ़ करना माँ
आज तुझको ना अपना पायेंगे !
©Copyright Deeप्ती