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Friday, 9 November 2012

मुसाफिर


चल ले ऐ! मुसाफिर
तू चाहे किन्ही काफिलों में
ये जान ले आज तू
सफर तो करना है तय अकेले..
 
फिर चाहे साथ का जूनून हो
या हो जुदाई का गम
मंजिल तो तेरी अपनी है
समेट ले अपने आप में ..
 
चल अकेला चल अकेला
मौज में अपनी
गुनगुनाते हुए
मंगल मंज़िल गीत...
~०८/११/२०१२~