Search This Blog

Friday 25 November 2011

अजीब शाम !!


हां था ना 

उस शाम में कुछ अजीब सा 
उसकी चमक ही अलग थी 
हवा में खुश्बू कुछ नई सी थी 
आँखों में नर्मी थी 
नम थी पर खुश थी 

था ना  कुछ अजीब सा उस शाम में

जो मेरे दिल ने सुनी थी दस्तक
क्या वो तुमने दी थी ?
क्या मेरी कहानी जुडी थी 
तुम्हारी नज़रों से 
बुन रही थी कोई सपना अपना सा 

कुछ अजीब ही था उस शाम में 

चाँद कि रौशनी जैसे
उतर रही थी मन मंदिर में
सितारों कि चुंदरी 
समेट रही थी आगोश में 
कर रही थी मदहोश मुझे 

कुछ अजीब ही शाम थी 

वो महक लग रही थी 
जानी पहचानी  सी
जन्मों कि तड़प 
जैसे घुल रही थी 
नरम साँसों में 

था न कुछ अजीब उस शाम में ?? 

~२४/११/२०११~